ज़रूरी है क्या
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हर रिश्ते का एक नाम हो यह ज़रूरी है क्या
हर सफर का एक मुकाम हो यह ज़रूरी है क्या
हर खत का एक पैगाम हो यह ज़रूरी है क्या
हर शुरुआत का एक अंजाम हो यह ज़रूरी है क्या
हर मुसाफिर का एक मेज़बान हो यह ज़रूरी है क्या
हर मंदर का एक भगवान् हो यह ज़रूरी है क्या
हर हकूमत का एक फरमान हो यह ज़रूरी है क्या
हर गुलिस्तान का एक बाग़बान हो यह ज़रूरी है क्या
दिल-ए-पुर-इज़्तिरार पर लगाम हो यह ज़रूरी है क्या
मुहब्बत-ए-मर्कज़ हम पर मेहरबान हो यह ज़रूरी है क्या
उल्फत की कसक है ये कम ना होगी “सुबु”
हर ख्वाहिश हक़ीक़त बन जाय यह ज़रूरी है क्या
PS. Originally published on July 8, 2017 on Medium.
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